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Friday, August 21, 2015

Kalsarp yog Kay hye..mantr...

क्या है कालसर्प योग राहु और केतु मूलत: राहु-केतु दोनों ही आध्यात्मिक ग्रह हैं। अत: इन ग्रहों के विशेष अध्ययन की नितांत आवश्यकता है। वास्तव में राहु-केतु ग्रहों का हमारे कार्मिक फल से बहुत गहरा संबंध है। ये ग्रह जीवन के सूक्ष्म बिन्दुओं के ज्यादा निकट हैं। इनका सीधा संबंधा हमारी चेतना से है। (ये दोनों ग्रह अपना प्रभाव देने में अचूक हैं। वैज्ञानिक विचार राहु-केतु ग्रहों को छाया ग्रह कहा जाता है, क्योंकि आकाश में ये दोनों ग्रह बिन्दुओं के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। जहां सूर्य और चन्द्र पथ एक-दूसरे से मिलते हैं। उस बिन्दु विशेष को राहु-केतु छयाग्रह कहा गया है। प्रभाव मुख्यत: इन छाया ग्रहों से जातक के आंतरिक स्वभाव का पता चलता है। जिसके अनुसार जातक अपने जीवन को गतिमान कर सकता है। इन ग्रहों की स्पष्ट व्याख्या से व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का पूर्वानुमान लगाकर उनसे अपनी सुरक्षा कर सकता है। किन्तु इन छाया ग्रहों के बारे में एक बात सत्य है कि इन ग्रहों द्वारा जीवन में जो भी अनिष्टकारी घटनायें होती है। वे जातक को आध्यात्म की ओर अग्रसर करती है। केतु एक धवजा भी है। किन्तु ध्वजा का अर्थ पताका या झंडा नही है। केतु को ध्वजा कहने का अर्थ है कि केतु परमात्मा की शक्ति का मूर्त रूप है। जिसके प्रभाव और चेतना से मनुष्य इस सृष्टि में व्याप्त उस सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी शक्ति का अनुभव कर सकता है। राहु और केतु से मुख्यत 12 प्रकार के कालसर्प योग बनते है 1. अन्नत कालसर्प योग राहु जब लग्न में हो और केतु सप्तम भाव में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो हो तो अन्नत नामक कालसर्प योग बनता है और इस कालसर्प योग के प्रभाव से जातक धनवान, बलवान, बुद्विमान आध्यात्मवेता होता है साथ-साथ बहुत ही दृढ़़ निश्चयी और साहसी होगा। हां इतना जरुर मैंने देखा है कि उसकी पत्नी का स्वास्थ्य हमेशा प्रतिकूल रहता है। परन्तु वे अपने पुरुषार्थ से अच्छी सफलता पाते हैं। उपाय सूर्योदय के बाद तांबे के पात्र में गेहूं, गुड़, भर कर बहते जल में प्रवाह करें। संतान कष्ट हो तो काला और सफेद कम्बल गरीब को दान करें। प्रतिदिन एक माला ‘ú नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करें। पर शिव का रुद्राभिषेक करें। कालसर्पदोष निवारक यंत्र घर में स्थापित करके उसका नियमित पूजन करें। 2. कुलिक काल सर्पयोग जब राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम् स्थान में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है। इस भाव में राहु हमेशा जातक को दोहरे स्वभाव का बनाता है। अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण अनेकों प्रकार की परेशानियों का सामना इन्हें करना पड़ता है। प्रियजनों का विरह झेलना पड़ता है। कई बार इस जातक को पाइल्स की शिकायत भी देखी गई है। कारण की केतु अष्टम स्थान में है। परन्तु एक बात मैंने देखी है कि केतु यहां पर मेष, वृष, मिथुन, कन्या और वृश्चिक राषि में हो तो जातक के पास धन की कमी नहीं होती। ऐसे व्यक्तियों को विरासत में बहुत धरोहर मिलती है। उपाय चांदी की ठोस गोली सफेद धागे में हमेशा गले में धारण करें। केसर का तिलक लगाना भी आपके लिए शुभ होगा। 21 रविवार को बहते पानी में श्रद्वानुसार लकड़ी के कच्चे कोयले बहते पानी में प्रवाहित करें। 3 वासुकी कालसर्प योग राहु तीसरे भाव में और केतु नवम् भाव में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो वासुकी नामक कालसर्प योग बनता है यदि तीसरे भाव में राहु और नवम् भाव में केतु तो जातक के पास धन-दौलत और वैभव की कोइ कमी नहीं रहती। �ी सुख अनुकूल रहता है साथ ही मित्र भी हमेषा सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। परंतु अपने से छोटे भाइयों से इनका हमेषा विरोध रहता है। परन्तु पिता से अच्छी निभती है और पिता का आज्ञाकारी पुत्र भी होता है। तृतीय भाव में राहु हो तो ऐसे वयक्ति धर्म के माध्यम से धन अर्जित करते हैं और बहुत ही प्रसिद्ध होते हैं। विदेश यात्रा करते हैं, व देश विदेश में यश प्राप्त करते हैं। उपाय चावल, दाल और चना बहते पानी में प्रवाह करें। मकान के मुख्य द्वार पर अंदर-बाहर तांबे का स्वस्तिक या गणेश जी मूर्ति टांग दें। प्रत्येक बुधवार को काले व� में श्रद्वानुसार उड़द या मूंग बांधकर, राहु का मंत्र जप कर गरीब व्यक्ति को दान में दे दें यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है। राहु, केतु की दशा अंतर्दशा में महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जाप करें या करवायें। 4. शंखपाल कालसर्प योग जब राहु चौथे स्थान में हो और केतु दशम् स्थान में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो षंखपाल नामक कालसर्प योग बनता है यदि राहु यहां उच्च का हो और शुभ राशि वाला हो तो सभी सुखों से परिपूर्ण होता है। और जातक की कुंडली में शुक्र अनुकूल हो तो विवाह के बाद कारोबार और धन में वृद्धि होती है। साथ ही यदि चंद्रमा लग्न में हो तो आर्थिक तंगी कभी नहीं रहती। इस जातक को 48 वर्ष की आयु में बृहस्पति का उत्तम फल प्राप्त होता है। परन्तु फिर भी सफलता के लिए इन्हें विघ्नों का सामना करना पड़ता है। लेकिन केतु दषम भाव में मेष, वृष, कन्या और वृश्चिक राशि में है तो और भी उत्तम फल प्राप्त होता है एवं शत्रु चाह कर भी हानि नहीं पहुंचा सकता। चतुर्थ में राहु व दशम में केतु हो तो ऐसे व्यक्ति राजनिति में उतार चढ़ाव रहते हुए राजनिति में अच्छी सफलता पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को दूसरे साथियों से न चाहते हुए भी सहयोग प्राप्त होता है उपाय हर रविवार हो गेहूं को पीले कपड़े में बांध कर जरुरतमंद व्यक्ति को दान दें। रविवार के दिन 400 ग्राम धनियां बहते पानी में प्रवाह करें। 5 पद्म कालसर्प योग पंचम भाव में राहु व ग्यारहवें भाव में केतु इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो हो पद्म नामक कालसर्प योग बनता है पंचम भाव में राहु व ग्यारहवें भाव में केतु अध्यात्म की ओर प्रेरित करता है। उत्तम परिवार वाला, आर्थिक स्थिति मजबूत साथ ही उत्तम गुण एवं भोग से युक्त होता है। केतु ग्यारहवें घर में सम्पूर्ण सिद्धि व सफलता प्राप्त कराता है परन्तु इस योग में संतान पक्ष थोड़ा कमजोर रहता है। साथ ही जातक अपने भाइयों के प्रति थोड़ा कलहकारी होता है। 21 या 42 वर्ष की अवस्था में पिता को थोड़े कष्ट की सम्भावना रहती है। पंचम में राहु व एकादश में केतु हो तो ऐसे व्यक्ति सफल राजनितिक होते हैं। ऐसे व्यक्तियों को उतार चढ़ाव आते हैं परन्तु सफलता व यश अ'छा प्राप्त होता है। अधिकतर बड़े राजनितिज्ञों में यह कालसर्प योग पाया जाता है। क्योंकि यह भाव पूर्व जन्मों से सबंधित होतद्म हैं। पंचम और एकादश यह दोनों भाव ऐसे हैं राहु केतु कहीं भी बैठें हमेशा अच्छी ही सफलता मिलती है। परन्तु ऐसे व्यक्तियों को उदर (पेट) के माध्यम से शरिरिक कष्ट आता है। उपाय रात को सोते समय सिरहाने पांच मूलियां रखें और सवेरे मंदिर में रख आएं। संतान सुख के लिए दहलीज के नीचे चांदी की पत्तर रखें। किसी शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल अपने ऊपर से सात बार उतारकर सात बुधवार को गंगा या यमुना जी में प्रवाहित करें। सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं। 6 महापद्यम कालसर्प योग राहु छठे में केतु द्वादश भाव में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो महापद्यम नामक कालसर्प योग बनता है इस योग में राहु को छठे स्थान में बहुत ही प्रशस्त अनुभव किया गया है। सम्पत्ति, वाहन, दीर्घायु, सर्वत्र विजय, साहसी, बहादुर और उगा प्रवाह का होता है। लोगों को बहुत सहयोग करता है। यहां तक की फांसी के फंदे से बचा कर लाने की क्षमता होती है।राहु छठे में और केतु द्वादश में हो तो ऐसे व्यक्ति धर्म से जुड़े होते हैं सभी प्रकार की प्रतिस्पर्धा में अच्छी सफलता पाते हैं तथा दान पुण्य और दूसरों की मदद में अपना सब कुछ लुटाने को ततपर रहते हैं। परंतु स्वयं कभी निरोग नहीं रहता। अनेको प्रकार की बिमारियों का सामना करना पड़ता है। यदि जातक को सट्टे या जुए की आदत लग जाए तो बर्बाद हो जाता है। आंखों की बिमारी से दूर रहना चाहिए उपाय गणेश जी की उपासना सर्वमंगलकारी सिद्ध होगी। शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से शनिवार व्रत आरंभ करना चाहिए। यह व्रत १८ बार करें। काला व धारण करके 18 या 3 राहु बीज मंत्र की माला जपें। तदन्तर एक बर्तन में जल, दुर्वा और कुश लेकर पीपल की जड़ में डालें। भोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी समयानुसार रेवड़ी, भुग्गा, तिल के बने मीठे पदार्थ सेवन करें और यही दान में भी दें। रात को घी का दीपक जलाकर पीपल की जड़ के पास रख दें। मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रद्धापूर्वक करें। 7 तक्षक कालसर्प योग ( केतु लग्न भाव मेंं ) केतु लग्न में राहु सप्तम घर में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक बहुत ही उंगो सरकारी पदों पर काम करता है। सुखी, परिश्रमी और धनी होता है। वह अपने पिता से बहुत ही प्यार करता है और साथ ही बहुत सहयोग करता है। लक्ष्मी की कोई कमी नहीं होती है लेकिन जातक स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाला होता है। यदि अपनी संगत अच्छे लोगों के साथ रखे तो अच्छा रहेगा। गलत संगत की वजह से परेशानी भी आ सकती है। यदि जातक अपने जीवन में एक बात करें कि अपना भला के साथ साथ दूसरो का भी भला सोचे तरो जीवन में काई परे उपाय सात रविवार 11 नारियल बहते पानी में प्रवाह करें। नित्य प्रति हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें और हर शनिवार को लाल कपड़े में आठ मु_ी भिंगोया चना व ग्यारह केले सामने रखकर हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और उन केलों को बंदरों को खिला दें और प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी के मंदिर में बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं और हनुमान जी की प्रतिमा पर चमेली के तेल में घुला सिंदूर चढ़ाएं। ऐसा करने से वासुकी काल सर्प योग के समस्त दोषों की शांति हो जाती है। 8 कर्कोटक कालसर्प योग केतु दूसरे भाव में राहु अष्ट्म भाव में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो कर्कोटक नामक कालसर्प योग बनता है इस योग में जातक उदार मन, समाज सेवी और धनवान होता है। परंतु वाणी पर संयम कभी नहीं रहता। साथ ही परिवार वालों से कम ही पटती है। साथ ही अपने कार्यों को बदलते रहता है। शिक्षा में समस्या आती है। साथ ही जातक हमेशा निंदा का पात्र होता है। उपाय चांदी का चौकोर टुकडा हमेषा अपनी जेब में रखें। शुभ मुहूर्त में बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें और उसके बाद लगातार पांच मंगलवार को व्रत रखते हुए हनुमान जी की प्रतिमा में चमेली में घुला सिंदूर अर्पित करें और बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें। अंतिम मंगलवार को सवा पांव सिंदूर सवा हाथ लाल व� और सवा किलो बताशा तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाकर प्रसाद बांटे। सवा महीने तक जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं और प्रत्येक शनिवार को चींटियों को शक्कर मिश्रित सत्तू उनके बिलों पर डालें। 9 शंखचूड़ कालसर्प योग केतु तीसरे भाव में और राहु नवम् भाव में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तो शंखचूड़ नामक कालसर्प योग होता है। इस योग में जातक दिर्घायु, साहसी, यषस्वी और धन-धान्य से परिपूर्ण होता। दाम्पत्य सुख बहुत ही अनुकूल रहता है। सर्वत्र विजय और सम्मान पाता है। परन्तु इस जातक का चित हमेशा अस्थिर रहता है। उपाय: राहु और केतु के बीज मंत्रों का जाप करें। महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें इसके साथ हर रोज भगवान शिव के शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करें। चांदी या अष्टधातु का नाग बनवाकर उसकी अंगूठी हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करें। किसी शुभ मुहुर्त में अपने मकान के मुख्य दरवाजे पर चांदी का स्वास्तिक एवं दोनों ओर धातु से निर्मित नाग चिपका दें। 10 घातक कालसर्प योग केतु चतुर्थ स्थान में और राहु दशम स्थान में इस बीच सारे ग्रह स्थित हो तोघाताक नामक काल सर्प योग बनता है। इस योग में जातक परिश्रमी, धन संचयी व सुखी होता है। राजयोग का सुख भोगता है। दषम राहु राजनिती में अवश्य सफलता दिलाता है। मनोवांछित सफलताएं मिलती है। यदि शनि अनुकूल बैठा हो तो। परन्तु जातक हमेषा अपनी जन्म भूमि से दूर रहता है। माता का स्वास्थ्य प्रतिकूल रहता है। सब कुछ होने के बाद भी जातक के पास अपना सुख नहीं होता है। उपाय: हर मंगलवार का व्रत करें और 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। नित्य प्रति हनुमान चालीसा का पाठ करें व प्रत्येक मंगलवार का व्रत रखें और हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर घुलाकर चढ़ाएं तथा बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें। शनिवार का व्रत रखें और लहसुनियां, लोहा, तिल, सप्तधान्य, तेल, काला व�ा, सूखा नारियल, आदि का समय-समय पर दान करते रहें। शनिवार का व्रत करें और नित्य प्रति दषरथकृत �ोत पाठ करें। मंगलवार के दिन बंदरों को केला खिलाएं और बहते पानी में मसूर की दाल सात बार प्रवाहित करें। 11. विषधर कालसर्प योग केतु पचंम में राहु ग्यारहवें में तथा इस बीच सारे ग्रह आ जाए तो तो विषधर नामक कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक 24 वर्ष की अवस्था के बाद सफलता प्राप्त करता है। आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। ग्यारहवें भाव में राहु हमेशा अनुकूल फल प्रदान करता है। उचित व अनुचित दोनों तरीकों से धन की प्राप्ति होती है। दाम्पत्य सुख बहुत ही अनुकूल रहता है। संतान सुख की कोई कमी नहीं रहती। परंतु प्रथम संतान को अवष्य कष्ट मिलता है। उपाय: घी का दीपक जला कर दुर्गा कवच और सिद्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें। प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - ‘ú हर हर महादेव’ कहते हुए अभिषेक करें। ऐसा केवल सोलह सोमवार तक करें। 12 शेषनाग कालसर्प योग केतु छठे और राहु बारहवें तथा इस बीच सारे ग्रह आ जाए तो शेष नाग कालसर्प योग बनता है। इस योग में जातक हमेशा अपनी मेहनत और सूझ-बुझ से सफलता हासिल करता है। परंतु बहुत जरुरी है अपने आचरण को संयमित रखना। संतान पक्ष प्रबल होता है। दीर्घायु होता है। परन्तु ननिहाल पक्ष से हमेशा खटपट लगी रहती है। उपाय: काले और सफेद तिल बहते जल में प्रवाह करें। किसी भी मंदिर में केले का दान करें। किसी शुभ मुहूर्त में ‘ú नम: शिवाय’ की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्र आदि सामग्रियां श्रद्धापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें। हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल व सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं। Posted by Dheeraj Sharma at 2:28 AM Email This BlogThis! 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